आज ही के दिन लहू था बिखरा पुलवामा की माटी में। आज ही के दिन लहू था बिखरा पुलवामा की माटी में।
कहां अभी स्वतंत्र हुए हम आजादी के इस दौर में। कहां अभी स्वतंत्र हुए हम आजादी के इस दौर में।
मौन चौक के पनघट देखे गगरी कलशा रहा नहीं। मौन चौक के पनघट देखे गगरी कलशा रहा नहीं।
रामायण का राम हूँ मैं युद्ध का परिणाम हूँ, रामायण का राम हूँ मैं युद्ध का परिणाम हूँ,
ऊंची ऊंची मिनारे सुना रही है बीती कहानियां, हमारी सभ्यता की महक से गुलशन है आज भी ये ऊंची ऊंची मिनारे सुना रही है बीती कहानियां, हमारी सभ्यता की महक से गुलशन है ...
मैं दान नहीं कर रहा तुम्हें मोहब्बत के एक और बंधन में बाँध रहा हूँ उसे बखूबी निभाना तुम...! मैं दान नहीं कर रहा तुम्हें मोहब्बत के एक और बंधन में बाँध रहा हूँ उसे बखूब...